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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

अध्याय 5  सात निर्णायक वर्ष

1890 में डेक्कन एजुकेशन सोसासटी से त्यागपत्र देने और 1897 में राजद्रोह के अपराध में सजा पाने के बीच वाले सात वर्ष तिलक के जीवन के निर्णायक वर्ष हैं। इन्हीं वर्षों में तिलक ने अपने को एक शिक्षा-शास्त्री से राजनीतिज्ञ के रूप में और एक प्रान्तीय नेता से राष्ट्रीय नेता के रूप में परिवर्तित किया। इन्हीं वर्षों में उनकी शक्ति एकाएक सर्वतोमुखी बनी। वह दो पत्रिकाओं का संचालन करते थे और कानून का अध्यापन-कार्य भी। समाज-सुधारकों का निरन्तर विरोध करने के साथ-साथ उन्होंने 'गणपति' और 'शिवाजी' पर्वों को भी चलाया। वह पूना नगरपालिका के पार्षद, बम्बई विश्वविद्यालय सिनेट के फेलो और बम्बई विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए। 'सार्वजनिक सभा' उदारवादियों के हाथ से छीनकर उस पर उन्होंने कब्जा कर लिया। 1896 के अकाल में किसानों का पक्ष लेकर सरकार से टक्कर ली। अगले वर्ष प्लेग-महामारी के समय उन्होंने एक स्वयंसेवक के रूप में कार्य किया। वह राष्ट्रीय कांग्रेस और प्राविंशियल पोलिटिकल कान्फ्रेन्स के अधिवेशनों में भी सक्रिय रूप से भाग लेते रहे। इतने पर भी न थकने पर उन्होंने 'ओरियन' नामक पुस्तक लिखी, जिसकी मैक्समूलर-जैसे विश्वविख्यात विद्वानों तक ने प्रशंसा की।

इन सात वर्षों में तिलक ने जितनी दिशाओं में काम किया, उसे देखकर उनकी काम करने की शक्ति पर आश्चर्य होता है। ऐसा लगता है उन दिनों उनमें कोई दैवी शक्ति वास करती थी। उनको मुख्य जीवन-धारा में छोटी-मोटी कई सहायक धाराएं आकर मिलीं और प्रवाहित हुई जिनसे उनकी मुख्य जीवन-धारा को शक्तिसम्पन्न गौरव प्राप्त हुआ।

तिलक ने लोक-जीवन में 1882 में प्रवेश किया जब क्राफोर्ड काण्ड के कारण वह प्रसिद्ध हुए। जन-सभा में उन्होंने पहला भाषण मामलतदारों के पक्ष में दिया जो नौकरी पाने के लिए राजस्व-आयुक्त क्राफोर्ड को घूस देने के अपराध में सरकारी नौकरी से बर्खास्त कर दिए गए थे। उनमें से बहुतों को यह लोभ दिया गया था कि यदि वे हनुमतराव इनामदार के विरुद्ध, जो क्राफोर्ड के लिए घूस लेने के मुख्य एजेण्ट होने के अपराध में सजा भुगत रहा था, गवाह बनें तो उन्हें क्षमा प्रदान कर दी जाएगी। स्वयं क्राफोर्ड तो घूस लेने के आरोप से बरी हो चुका था और केवल अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से ऋण लेने के अपराध में ही दोषी ठहराया गया था। क्राफोर्ड के बचने का मूल कारण बस यही था कि वह गोरी चमड़ी का अंग्रेज था, इसलिए उसको दण्ड केवल नौकरी से बर्खास्त करने भर का दिया गया था। लेकिन मामलतदारों को सरकार ने अपने दिए हुए वचन का पालन करके धोखा दिया और उन्हें कई रूपों में दण्डित किया।

तिलक ने इस हास्यास्पद न्याय का विरोध किया और क्राफोर्ड की चालाकी के शिकार मामलतदारों को मुक्ति दिलाने का भरसक प्रयत्न किया। भारत में सफलता न मिलने के बाद उन्होंने ब्रिटिश पार्लियामेट के डिग्बी और ब्रैडले-जैसे सदस्यों से इस मामले को उठाने की प्रार्थना की। इससे भी कोई लाभ न हुआ परन्तु सरकार ने मामलतदारों के विरुद्ध मुकदमा वापस ले लिया। उनमें-से बहुत लोग पुनः नौकरी में वापस ले लिए गए या उन्हें पूरा निवृति-वेतन दिया गया। इस घटना से तिलक को प्रथम बार अन्याय का दृढ़ता से विरोध करने का अवसर मिला। यह दृढ़ता उन्होंने जीवन में बार-बार दिखलाई। मामलतदारों ने कृतज्ञता-ज्ञापन-स्वरूप उन्हें एक जेब-घड़ी भेंट की जिसे कहोने जीवन-भर अपने साथ रखा।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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